कठुआ, उन्नाव और बाकीं पर जितना आपको याद रहा हो/ रहे उस पर भी
मैं हर रोज अखबार पढ़ता हूँ !
उन पन्नो में,
हर रोज
न जाने कितने
रिश्तों की
मौतें होती है |
किसी माँ का बच्चा
मर जाता है,
किसी का पति
मर जाता है,
और मैं हर रोज
इंसानियत का दम घुटते हुए
पाता हूँ |
पर मुझे कोई फ़र्क़ नहीं परता,
मैं महीने के अंत में
इन सबको
कबाड़ी के भाव
बेच आता हूँ,
ताकि अगले महीने की
हत्याओं के
रखने की जगह हो
मेरे घर में
तुम्हारे दिल में|
तुम्हें पता है कि
मैं कौन हूँ ?
मैं तुम्हारा यक्ष हूँ|
मैं हर रोज अखबार पढ़ता हूँ !
उन पन्नो में,
हर रोज
न जाने कितने
रिश्तों की
मौतें होती है |
किसी माँ का बच्चा
मर जाता है,
किसी का पति
मर जाता है,
और मैं हर रोज
इंसानियत का दम घुटते हुए
पाता हूँ |
पर मुझे कोई फ़र्क़ नहीं परता,
मैं महीने के अंत में
इन सबको
कबाड़ी के भाव
बेच आता हूँ,
ताकि अगले महीने की
हत्याओं के
रखने की जगह हो
मेरे घर में
तुम्हारे दिल में|
तुम्हें पता है कि
मैं कौन हूँ ?
मैं तुम्हारा यक्ष हूँ|