Sunday, June 27, 2021

 1.
थोड़ी जिंदगी
थोड़े खवाब
और
थोड़ी कहानियों
के मानिंद
जिन्दा रहना चाहते हैं हम !

2.
दिल की बातों को
सुनने के लिए
एक ख़ामोशी चाहिये,
शायद सदिओं बड़ी,
कौन जियेगा तब तक,
क्या मेरी बात कभी
पहुँच पायेगी
तुम तक|   

Sunday, May 5, 2019


इस तरह  जिन्दा हैं
इस जिंदगी से हम
कि जैसे
कोई वक़्त का परिंदा
आयने में कैद हो

Saturday, February 23, 2019

१.

जो ढल गया,
वो एक रात थी

एक नई सुबह
को तलाशता मेरा चाँद

मुझसे
खो गया !

२.
तुम कह लेना मुझसे,
वो सारी  बातें,
एक बार बस
इन  तनहा सन्नाटों
का शोर थम जाने दो !






Tuesday, May 1, 2018

चले तो होंगे जरूर
वो मुझसे मिलने के लिए,
ये वक़्त ही 
शायद कहीं
ठहर गया होगा |  

Saturday, April 28, 2018


१. 

रूठ कर तुम चले जाना पर जरा ठहरो,
दर्द  ज़माने  ने  दिये थे मुझे बहूत, 
तुम्हारे  बहाने से |

२.

तुम्हारे  दर्द ने बनाये थे दिल में कई सुराख़,  
ये तो सपनो  के पैबंद हैं,
जो दिल को धरकाते रहे |

3.
बुरी आदत है 
किसी  के दर्द का एहसास होना | 

बुरी आदत है 
दिल के तस्दीकिओं से
इस बाजार में बिकना |

पर सबसे बुरी आदत है  
आदतों का  बदल जाना |
 

Monday, April 16, 2018

कठुआ, उन्नाव  और  बाकीं पर जितना आपको याद रहा हो/ रहे  उस पर भी



मैं  हर रोज अखबार पढ़ता हूँ  !

उन पन्नो  में,
हर रोज 
न  जाने कितने
रिश्तों की
मौतें होती है  |

किसी माँ का बच्चा 
मर जाता है,
किसी का पति
मर जाता है,
और मैं हर रोज 
इंसानियत  का दम घुटते हुए 
पाता हूँ |

पर मुझे कोई फ़र्क़ नहीं परता,

मैं महीने के अंत में
इन सबको
कबाड़ी के भाव
बेच आता हूँ,

ताकि अगले महीने की
हत्याओं के
रखने की जगह हो
मेरे घर में
तुम्हारे दिल में| 

तुम्हें पता है कि
मैं कौन हूँ ?

मैं तुम्हारा यक्ष हूँ| 




मैं  हर रोज अखबार पढ़ता हूँ  !

उन पन्नो  में,
हर रोज
न  जाने कितने
रिश्तों की
मौतें होती है  |

किसी माँ का बच्चा
मर जाता है,
किसी का पति
मर जाता है,
और मैं हर रोज
इंसानियत  का दम घुटते हुए
पाता हूँ |

पर मुझे कोई फ़र्क़ नहीं परता,

मैं महीने के अंत में
इन सबको
कबाड़ी के भाव
बेच आता हूँ,

ताकि अगले महीने की
हत्याओं के
रखने की जगह हो
मेरे घर में
तुम्हारे दिल में|

तुम्हें पता है कि
मैं कौन हूँ ?

मैं तुम्हारा यक्ष हूँ|


Saturday, March 17, 2018

कोई तो होगा
जो रहता होगा
उन आसमानों में,
चाँद का यूँ
तन्हा होना,
मुझे अच्छा
नहीं लगता

Saturday, March 10, 2018

1 . लिख कर हज़ारों कहानियाँ,
वो किरदार सो गया |

2. लिखता हूँ,
जब भी कागजों पर,
तो ऐसा लगता है |

ये दिल है जो
धड़कता है
बहकता है
स्याहियों के दरमियाँ  |

3. उसको अबतक है
मेरे जिन्दा होने का एहसास |
वो बच्चा जो
अबतलक बड़ा ना हुआ |

 

Saturday, November 25, 2017

ये तो तुम्हारा नाम है
जो ज़िंदा हैं
इस ज़िंदगी से हम |

 नहीं तो,
मौत की इबारत पर
हज़ारों आशनाये 
बिखरी हुई होतीं |

यूँ तो कहने आये थे हम
हज़ारों कहानियाँ,
पर अगर एक बात कहते
तो हज़ार बात होती|

दो परों के सपनों से
मैं कई बार
उस सातवें आसमान
के पार गया,
कोई वहाँ नहीं था
हम किससे बात करते| 

जिंदगी के फलसफे को
सुलझाने के फेर में
इतने उलझ गयें हैं कि
की हम
और क्या बात करते| 













Thursday, October 12, 2017


दिल्ली कि
इस आबो हवा में

ग़ालिब कि
फ़िराक़े ख्याली
रचती है बसती  है

ये कवितायेँ ही तो है
जो इंसान और मशीनो
के इस जंग में
मशीनो को इंसान बनाती   है
सलीके से जीना
और शान से मरना
सिखलाती हैं

कभी फुरसत हो तो
सुनना दिल्ली कि
इन हवाओं को
ये आज भी
ग़ालिब के शेऱ
गुनगुनाती हैं | 

Thursday, September 21, 2017


For The forever love



आज भी नहीं उगा है चाँद
इसीलिए
आज भी आसमान के सारे तारे
मेरा साथ देने आयें हैं

आज भी चल रही है वही ठंढी सर्द हवा
आज भी छाया है वही घना अँधेरा
और आज भी सजी है हमारी वही महफ़िल

मेरी इन हवाओं

और उन सितारों की

और आज भी

अपने घर के छत पर बैठा

अकेला मैं

बस  यही सोचता हूँ कि

चलो  अच्छा हुआ

मैं ना कह तुमसे

वो  अनकहीं बातें

नहीं तो इस

अँधेरे में

इन

हवाओ

और

उन

सितारों

का साथ

कौन  देता |

पर

मैंने कोशिस की थी

लेकिन

जब भी मैंने तुम्हें

देखा

मैंने

खुद  को

किसी अनंत में

खोता  पाया

अब तुम्ही कहो

कोई कैसे कह

सकता है

उस अनंत को

केवल

कुछ

शब्दों में

पर मैंने कोसिस

की थी

मैंने

बनाया थे अनगिनत

सब्द

आसमान के इन्हीं

असख्यं तारो से

और उसमें

संजो दिया था

अपने उसी अनंत को |

पर तुमने  कभी

इन तारों के तरफ

नहीं देखा

क्योंकि तुम्हें  कब पसंद आये थे

अँधेरी रातों के चमकते तारे

पर मैंने और भी

कोसिस कि थी

मैंने  संजो दिया था अपने उसी

अनंत को

इन्ही ठंढी

हवाओं की  हरेक सिहरन में |

ये हवाएं तुम्हारे

खिडकिओ पर दस्तक देती रही

दस्तक देती रही

पर तुमने नहीं खोले थे कभी

अपने दरवाजे अपने खिड़कियाँ |

क्योंकि  तुम्हें  कब पसंद आये थे

ठंडी हवाओं के सर्द  थपेड़े

पर आज भी संजो रहा हूँ मैं

अपने उसी अनंत को

इन हवाओ में

उन सितारों में

की सायद तुम्हें कभी ठंडी हवाओं के सर्द  थपेड़े  पसंद आने लेंगे |

की सायद तुम्हें कभी अँधेरी रातों के चमकते तारे पसंद आने लेंगे



Tuesday, September 6, 2016

3 ...........

एक पुरानी,
भूली
भटकी
शर्द सी
प्यार की जरूरत पड़ती है
कवितायेँ लिखने के लिए

वो लमहा जब दिमाग
काम ना करे
और
दिल एक खामोस से
अहसास में खोया रहे

जब सब चुप हो,
उदास हो, रात हो,
सितारों से बात हो,
ताजमहल के किनारे
वो यमुना बहती रहे,
हम तुम बैठे रहें ,
शर्द हवा चलती रहे,
लम्हा जैसे थम सी जाये,
साँस जैसे रूक सी जाये

वो मिलन ही तो मिलन है जब
हम तुम ना रहे
बस एक एहसास रहे.

हमारे तुमहारे सबके दिलों में
वो प्यार जिन्दा रहे

कवितायेँ तभी मुस्कराती है

अँधेरी रातों में भी
सितारों सी चमक सी जाती है

Tuesday, October 6, 2015

 2  ...........

एक  लंबी सी नींद के पहले
बची है
बस थोड़ी सी जिंदगी,

वो जिंदगी
जिसमे सपने भरे हैं
अपनो के,

कोई रूठ जाए
तो सोचता हूँ
मना लूँ उसको
उस लंबी सी
नींद के पहले
जो आ सकती है
कभी भी
बगैर कोई दस्तक दिए !

Wednesday, April 2, 2014

1 ......

अब हम किसको कहें तो कैसे
कैसे कैसे पल बदला
हम तुम बदले

क्या था बुरा
वो जीवन अपना
छोटी आँखें और
छोटा सपना

जीवन का वो
आवर्त भला था
छोटा था पर
कुछ अच्छा गहरा था

क्या अच्छा था
जब अंधियारा था
उस रात की गर
सुबह ना होती
हम तुम अब भी 
सुबह को  तकते
इस उजियारे से
मेरी  मानो  तो
उस उजियारे
का
भरम भला था